भलाई करने से सीमित और बुराई छोड़ने से असीम पूण्य होता है:- जीयर स्वामी
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भलाई करने से सीमित और बुराई छोड़ने से असीम पूण्य होता है:- जीयर स्वामी

सिने आजकल आरा बिहार। आरा सदर प्रखंड के महुली के समीप बलुआ गांव में तृण कुटिया से प्रवचन करते हुए लक्ष्मी प्रपन्न श्री जीयर स्वामी जी महाराज ने कहा कि भलाई करने से सीमित पुण्य होता है और बुराई छोड़ने से असीम पूण्य होता है। जब तक जीवन है तब तक श्रीमदभागवत कथा का श्रवण करें। उसका आनंद लेना चाहिए। एक मात्र यह कथा हीं है जिसके श्रवण मात्र से मोक्ष की प्राप्ति संभव है। इसके सुनने से घर की दरिद्रता और जीवन की सारी परेशानियां समाप्त हो जाती है। घर में लक्ष्मी नारायण भगवान की कृपा बनी रहती है। स्वामीजी ने कहा कि बंधन क्रिया से नहीं होता, प्रत्युत कामना से होता है। अप्राप्त वस्तु की इच्छा और प्राप्त वस्तु की ममता ही बंधन है, परतंत्रता है। भोगों की इच्छा का त्याग करने के लिये मुक्ति की इच्छा करना आवश्यक है। परन्तु मुक्ति पाने के लिये मुक्ति की इच्छा करना बाधक है। मनुष्य कर्मों से नहीं बंधता, प्रत्युत कर्मों में वह जो आसक्ति और स्वार्थभाव रखता है, उनसे ही बंधता है। किसी भी कर्म के साथ स्वार्थ का संबंध जोड़ लेने से वह कर्म तुच्छ और बंधन कारक हो जाता है। यह सिद्धान्त है कि जब तक मनुष्य अपने लिये कर्म करता है, तब तक उसके कर्म की समाप्ति नहीं होती और वह कर्मों से बंधता ही जाता है।जब तक प्रकृति के साथ संबंध है, तब तक कर्म करना अथवा न करना-दोनों ही बंधन कारक 'कर्म' हैं। मुक्ति स्वयं की होती है, शरीर की नहीं। अत: मुक्त होने पर शरीर संसार से अलग नहीं होता, प्रत्युत स्वयं शरीर-संसार से अलग होता है।

जीयर स्वामी ने कहा कि साधक को चाहिये कि वह किसी को बुरा न समझे, किसी की बुराई न करे, बुराई न सोचे, बुराई न देखे, बुराई न सुने और बुराई न कहे। इन छ: बातों का दृढ़तापूर्वक पालन करने से साधक बुराई-रहित हो जायगा। कोई बुरा करे तो बदले में उसका बुरा न चाहकर यह समझो कि अपने ही दांतों से अपनी जीभ कट गयी। भलाई करने की उतनी आवश्यकता नहीं है। जितनी बुराई का त्याग करनेकी आवश्यकता है। इसका त्याग करने से भलाई अपने-आप होगी, करनी नहीं पड़ेगी। जिसको हम अच्छा समझते हैं, उसका पूरा पालन करने की जिम्मेवारी हमारे पर नहीं है। परन्तु हम बुरा समझते हैं, उसका पूरा का पूरा त्याग करने की जिम्मेवारी हमारे पर है। उसके त्याग का बल, योग्यता, ज्ञान, सामर्थ्य भी भगवान ने हमें दिया है। वीरता भलाई करने में नहीं है, प्रत्युत किसी की भी बुराई न करने में है।जो अपना कल्याण चाहता है, उसे किसी के भी प्रति बुरी भावना नहीं करनी चाहिये। दूसरों के प्रति हमारी बुरी भावना होने से उनका बुरा होगा या नहीं होगा—यह तो निश्चित नहीं है, पर हमारा अन्तःकरण तो मैला हो ही जायगा। याद रखो, किसी का भी बुरा करोगे तो उसका बुरा होनेवाला ही होगा। पर आपका नया पाप हो ही जायगा। भलाई करने से सीमित भलाई होती है, पर बुराई छोड़ने से असीम भलाई होती है। भला बनने के लिये हमें कुछ करनेकी जरूरत नहीं है। केवल बुराई सर्वथा छोड़ दें। तो हम भले हो जायंगे।

सी मीडिया से कमलेश पांडेय की खास खबर

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