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अपनी शर्तों पर राजनीति करने वाले ए.पी ज़ैदी को खिराजे अकीदत |

सिहेक्ट मीडिया नई दिल्ली से पाटेश्वरी प्रसाद व रिज़वान रज़ा की खास खबर:- ऐसी शख्सियत जो अपनी जिद्द और अपनी शर्तों पर राजनीति करते थे। वह कभी किसी के सामने हाथ नहीं फैलाते बल्कि उन्हें सम्मान देने वाले उनके सामने लाइन में खड़े रहते थे। जिनकी सियासत समाजवादी मूल्यों के उसूलों से काफी करीब थी। जो हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री चौधरी देवीलाल के राजनीतिक सलाहकार एवं सहयोगी रहे। जिन्होंने शरद यादव को राजनीति का ककहरा पढ़ाया और सियासत में लाने के लिए प्रेरित ही नहीं किया बल्कि देशभर में उनकी पहचान बनवायी।


आज ऐसी ही एक शख्सियत की छठी बरसी का दिन है। जिन्हें सियासी जमात में लोग ए.पी जैदी के नाम से जानते। जिनका पूरा नाम आले पंजातन जैदी था। नई दिल्ली के रफी मार्ग स्थित विट्ठलभाई पटेल आश्रय गृह में उनका सादगी से रहना आम चर्चा थी। हरफनमौला अंदाज़ और बेलौस मोहब्बत के धनी ज़ैदी साहब अविवाहित थे।शायद इसीलिए एकदम निश्चिंत, कभी कोई चिंता नहीं परन्तु सामाजिक और राजनैतिक कार्य में दक्ष थे।


उनकी सबसे बड़ी खासियत या यूं कहें कि उनका शौक बीड़ी, सिगरेट, सिगार, हुक्का और काली चाय (थर्मस) भर-भर के पीना। यहाँ तक कि ठंड के दिन और रात में नहाना और पंखा चला कर रजाई ओढ़कर सोना आदि उनका शौक था। ज़ैदी साहब भारतीय संस्कृति, इतिहास और भारतीय भाषाओं के अद्भुत संगम थे।

ए.पी ज़ैदी समाजवादी चिन्तक ही नहीं बल्कि धर्मनिरपेक्ष विचारक भी थे। जैदी साहब लोकदल के संस्थापक सदस्यों में से थे। भले ही कहने को ज़ैदी साहब किसी पार्टी में नहीं रहे लेकिन व्यावहारिक सच्चाई यह थी कि ज़ैदी साहब खुद एक पार्टी थे। उन्होंने कई सियासतदां तैयार किए। जबकि व्यावहारिक सच्चाई यह थी कि उन्होंने कभी किसी दल से चुनाव लड़ने के लिए टिकट नहीं मांगा, बल्कि खुद पार्टियां उनके घर पहुंच कर सियासी राय मशविरा करने आती थी।

ज़ैदी साहब के बेहद करीबी रहे गोरखा शहीद सेवा समिति के संरक्षक रिज़वान रजा बताते हैं कि ज़ैदी साहब सांप्रदायिक सदभाव कैसे मजबूत हो इस पर एक से बढ़कर एक उपाय किया करते रहते थे। ज़ैदी साहब गरीबों, शोषितों और जरूरतमंद लोगों की आवाज बन गये थे। वह समाज के दबे कुचले लोगों की तकदीर बदलना चाहते थे।

गांधीवादी राजनाथ शर्मा जी बताते है कि ज़ैदी साहब बड़े सुसंस्कृत और पढ़े, लिखे व्यक्ति थे। वे क्षुब्ध थे, भारत पाकिस्तान विभाजन से। यह कौमी विभाजन उनके ह्रदय में शूल की तरह चुभता रहा। ज़ैदी साहब वैचारिक रूप से समाजवादी थे। उनका मानना था कि वह दिन जल्द आएगा जब मुल्कों की दूरियां कम होंगी और दिलों की नफ़रत कम होगी।

ए.पी जैदी जैसे सियासतदां सदियों में पैदा होते हैं। हम ऐसे अनमोल राजनीतिज्ञ को सलाम करते है और उन्हें खिराजे अकीदत पेश करते हैं।

*पाटेश्वरी प्रसाद*

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