वंशवाद की जद में लोकतंत्र।
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वंशवाद की जद में लोकतंत्र।

Updated: Oct 1, 2022

सिहेक्ट मीडिया-दुनियां के तमाम लोकतांत्रिक देशों के लिए वंशवाद एक गंभीर चुनौती है।हैरत की बात तो यह है,कि इस व्यवस्था से सबसे पुराना लोकतंत्र अमेरिका भी अछूता नहीं है।जापान, फिलीपींस, इंडोनेशिया आदि देशों में भी यही स्थिति है। अमेरिका में कैनेडी, बुश और क्लिंटन परिवारों का दवदबा इसी वंशवादी राजनीति का द्योतक है।भारतीय राजनीति से लेकर दक्षिण एशिया के तमाम देशों में भी वंशवाद हॉबी रहा है।

नेपाल में कोइराला परिवार, बंगलादेश में शेख मुजीबुर रहमान परिवार एवं शेख जियाउर रहमान परिवार, श्रीलंका में भंडारनायके परिवार एवं जयवर्द्धने परिवार और पाकिस्तान में भुट्टो परिवार एवं नवाज शरीफ परिवार के राजनीतिक दबदबे को इसी परिप्रेक्ष्य में देखा जा सकता हैं।

भारतीय लोकतंत्र में वंशवाद इस तरह से पैठ बना लिया है, कि सबसे बड़ी पार्टी का दम्य भरने वाली केंद्र में सत्तारूढ़ भाजपा भी इससे अछूती नहीं है।नेहरू-गांधी परिवार की तो बात ही निराली रही है।हैरत की बात तो यह है,किभारतीय लोकतंत्र में छोटे छोटे दलों के रूप में उभरा सपा,बसपा, राजद,बीजद, बाम दलों, शिरोमणि अकाली दल रांकपा,शिवसेना,तृणमूल आदि भी वंशवाद से अछूता नहीं है।यही वजह है,कि हाल में सम्पन्न राजनीतिक दलों के अध्यक्षों के चुनाव में वंशवाद नए सिरे से उभरकर सामने आ गया है।

हांलाकि कांग्रेस ने गैर नेहरू-गांधी परिवार के सदस्य को अध्यक्ष पद पर बैठाकर अपने ऊपर लगे वंशवादी राजनीति के धब्बे को साफ करने की कोशिश की है।आप में अभी इसकी शुरुआत नहीं हुयी है।

भारत की राजनीति में परिवारवाद को लेकर कितनी भी बात की जाए, लेकिन यह देखा गया है,कि कोई भी राजनीतिक पार्टी इससे अछूती नहीं है। इससे इस बात को बल मिलता है,कि राजनीतिक वंशवाद भारत की राजनीति को जकड़े हुए है।

भारतीय राजनीति में अगर वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव परिणाम को देखा जाय तो भाजपा के नारे के विपरीत वंशवाद की राजनीति तेजी से बढ़ा है।हालाँकि वंशवाद ने अपनी पैठ वर्ष 1952 से जमा रखा है,जो आज तक जारी है। प्रायः यह देखा गया है,कि जिस परिवार से एक बड़ा नेता हो जाता है,तो उस परिवार के बाकी सदस्यों को विरासत में राजनीति मिल जाती है।

वर्ष1999 से 2014 तक के आंकड़ों का विश्लेषण किया जाय तो कांग्रेस के पास लोकसभा के लिए चुने गए वंशवादी सांसदों की संख्या 36 थी। जहाँ तक अन्य राजनीतिक पार्टियों का सवाल है तो वह भी पीछे नहीं रही थी। भाजपा 31 सांसदो के साथ कांग्रेस को लगभग बराबर का टक्कर दे रही थी। वंशवादी राजनेताओं का एक समान घनत्व 2009 में देखा गया था। जब कांग्रेस और भाजपा से क्रमशः 11 प्रतिशत और 12 प्रतिशत सांसद वंशवाद से संबंधित थे।

आंकड़े बताते हैं, कि वर्ष 2009 के लोकसभा चुनाव में ‘वंशवाद’ चरम स्थिति पर था, जिसमें राजनेताओं के परिवारों से कुल 53 सांसद थे, जो निचले सदन का 9.5 प्रतिशत था। वर्ष 2014 में यह अनुपात 8.6 प्रतिशत तक गिर गया, लेकिन ये आकड़ें संसदीय सीटों पर होने वाले वंशवाद के अनुपात में बढ़ोत्तरी का रुझान दिखाते हैं, जो 2014 से 15 साल पहले 1999 में पाए गए अनुपात से लगभग दोगुना रहा था।

आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में कुल 2189 प्रत्याशियों ने भाग लिया,जिसमें से 389 अर्थात 18 प्रतिशत वंशवादी राजनीति से संबद्ध थे। इसी वर्ष के लोकसभा चुनाव में देश की दो बड़ी राष्ट्रीय पार्टियां काँग्रेस से 31.19 प्रतिशत और भाजपा से 22.02 प्रतिशत सांसद वंशवादी राजनीतिक पृष्ठभूमि से चुनाव में जीत दर्ज कर आए।

भारत में छोटे और क्षेत्रीय दलों में भी प्रमुख परिवारों के हाथों में केन्द्रीकृत सत्ता रही है। उदाहरण के लिए वर्ष 2009 में चुने गए जम्मू और कश्मीर राष्ट्रीय कांग्रेस के तीन सांसदों में से दो राजनीतिक घरानों से संबद्ध थे, जिसका मतलब है, कि पार्टी में वंशवाद से जुड़े लोगों का अनुपात 67प्रतिशत था जो किसी भी पार्टी का उच्चतम प्रतिशत कहा जा सकता है।

इसी अवधि के दौरान राष्ट्रीय लोकदल के 40 प्रतिशत सांसद वंशवाद के दायरे में थे, वहीं शिरोमणि अकाली दल के 25 प्रतिशत नेता अपने राजनीतिक वंश के सहारे ही राजनैतिक मैदान में खड़े थे ।सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में वर्ष 1952 से लोकसभा के लिए चुने गए 51नेता वंशवादी थे। ये आँकड़े किसी भी राज्य की तुलना में सबसे ज्यादा थे। संख्या के मामले में 80 सीटों में से 22 सांसद किसी न किसी राजनीतिक घराने से संबधित हैं।

पश्चिम बंगाल और पंजाब दोनों जगहों पर अपने संबंधित क्षेत्रीय दलों में राजनीतिक वंशों से सबसे अधिक प्रतिनिधि रहे हैं। जबकि 17वीं लोकसभा चुनाव में पंजाब से सर्वाधिक 62 प्रतिशत सांसद राजनीतिक घराने से संबंधित हैं।भारतीय राजनीति में वर्ष1952 के बाद सबसे लंबे समय तक सांसद रहे बाम नेता सोमनाथ चटर्जी राजनीतिक घरानों से ही संबंधित थे।उनके पिता एन सी चटर्जी ने पश्चिम बंगाल के बर्दवान लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र का तीन बार प्रतिनिधित्व किया था। उनके निधन के बाद हुए उपचुनाव में सोमनाथ चटर्जी ने उनकी जगह ली थी।

मुलायम सिंह यादव ने वर्ष1992 में समाजवादी पार्टी की स्थापना की थी। इस पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह के अलावा इनके पुत्र अखिलेश यादव मुख्यमंत्री का पद संभाल चुके हैं।बिहार में लालू राबड़ी के वाद उनके पुत्र तेजस्वी यादव राज्य के उपमुख्यमंत्री हैं।हालांकि कुछ राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में इस दौरान प्रायः कोई भी वंशवादी राजनीति का उदय नहीं हुआ।

बहरहाल यह कहा जा सकता है, कि परिवार की दूसरी पीढ़ी का राजनीति में आना गलत नहीं है, लेकिन राजनीतिक नेतृत्व पर यह दावा उनके गुण-कौशल और कार्य निष्पादन के आधार पर होना चाहिए न कि वंशवाद के रूप में।

डॉ.,समरेन्द्र पाठक वरिष्ठ पत्रकार।

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