कश्मीर की लड़कियां तायक्वोंडो में कर रहीं कमाल।
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कश्मीर की लड़कियां तायक्वोंडो में कर रहीं कमाल।

Updated: Aug 10, 2022

सी मीडिया से रिज़वान रज़ा की खास खबर - कश्मीर में खेल को ले कर जागरूकता बढ़ी है और वहां से काफी खेलाड़ी आगे बढ़ रहे, जिसमें लड़कियों की भागीदारी भी काफी बढ़ी है। हमारी मुलाकात तायक्वोंडो की ऐसी ही खिलाड़ियों से दिल्ली में हुई, जो आज अपना मुकाम सारी मुश्किलों को पीछे छोड़ कर बना रहीं। तायक्वोंडो फेडरेशन ऑफ इंडिया की तरफ से लखनऊ में हुए इवेंट में, कश्मीर से लखनऊ 4 दिन की नेशनल ट्रेनिंग पे शामिल हुई हीना, बिस्मा ट्रेनिंग पास की और जे एंड के वैली का गर्ल्स इंस्ट्रक्टर बनाया गया और साथ ही इनका और एक बॉयज खिलाड़ी यावर का सिलेक्शन इंटरनेशनल के लिए हुआ है, जो अब मलेशिया जाएंगे। हीना फिरदौस पहले ही एटेम्पट में ब्लैक बेल्ट हुईं हैं। ये सब बड़ी उपलब्धि है इन खिलाड़ियों के लिए।

18 साल की हीना फिरदौस बीए पहले साल की छात्र हैं, वो तायक्वोंडो की शुरुआत को ले कर कहती हैं कि चार पांच साल पहले स्कूल के दौरान तायक्वोंडो को जाना, फिर मेरा इंटरेस्ट बढ़ता गया, घर वाले भी सपॉर्टिव थे इसमें, लेकिन फिर बाहर की सोसाइटी वैसी सपॉर्टिव नहीं थी। फिर उसके बाद भी घर वालो ने सपोर्ट किया, सबकी बातें सुन कर भी, तब आज इस मकाम तक हूँ।

हिना बताती हैं जब पहली बार ट्राई किया था तो ही इससे लगाव हो गया था, मैं चाहती थी की इसमें जाऊं। क्योंकि हर लड़की कोई सिंगिंग, डांसिंग जाती है, वो सेम फील्ड हो जाती है। लेकिन मार्शल आर्ट ऐसा गेम है जो ज्यादा बॉयज फोकस करते हैं, हम चाहते हैं कि हमारे इंडिया से जितनी भी हो वो लड़कियाँ ही जाए।

इनके कोच सज्जाद बताते हैं कि बडगाम में इवेंट था, वहां इन्होंने मेरे बच्चों का टैलेंट और परफॉर्मेन्स देखा था फिर ये मेरे अकादमी में आये। जब इसने जॉइन किया, तो मैंने अपनी जो सीनियर स्टूडेंट्स हैं, उसके साथ फाइट करवाई और इसकी फाइट और उसकी फाइट डिफरेंट लगी, तब मैं कोशिश की मैं इस लड़की पे बहुत ज्यादा फोकस करूँगा, क्योंकि इसमें टैलेंट बन कर है तो इसको थोड़ा बहुत पोलिश करने की जरूरत है, तो ये अपने राज्य और अपनी कंट्री का नाम रोशन करेगी।

सज्जाद बताते हैं कि लड़कियों को तायक्वोंडो की तरफ रुझान के लिए जब मुझे वीमेन कॉलेज श्रीनगर में जाने का मौका मिला तो मैंने लड़कियों को समझाया कि ये कैसा गेम है आप सीखो, सेल्फ डिफेंस बहुत मस्ट है। तो जब मैंने उनको ट्रेनिंग दी, आहिस्ता-आहिस्ता इस तरफ रुझान बढ़ गया, तो हमारे साथ कश्मीर में बहुत सारी लड़कियां जुड़ गईं, आज उन्होंने अपना नाम भी बनाया है। सज्जाद आपने कुछ स्टूडेंट्स का नाम बताते है जो इस खेल के जरिये इंटरनेशनल तक गए हैं। बाकी वो पुलिस की नौकरियों में भी इसके जरिये मौके मिलना और प्राथमिकता मिलने वालों के बारे में बताते हैं।

दूसरी खेलाड़ी जो इंटरनेशनल के लिए इसमें सलेक्ट हुईं हैं, वो बिस्मा बशीर हैं। जो पहले फुटबॉल खेलती थीं, ये इसमें स्टेट खेली हैं। लेकिन इन्हें इंजुरी हुई जिससे फुटबॉल से नाता टूट गया और अब तायक्वोंडो खेल रही और इंटरनेशनल तक का सफर तय किया है। ये सज्जाद साहब की एकडेमी अल जवाद से दो साल पहले जुड़ी हैं, साल 2018 में इन्होंने फुटबॉल छोड़ा था।

इस खेल में समाज और घर से सपोर्ट को ले कर बिस्मा कहती हैं कि जब मैंने फुटबॉल जॉइन किया था, जब मुझे सपोर्ट नहीं मिल रहा था। तायक्वोंडो जॉइन किया तो सपोर्ट किया पेरेंट्स ने, अब नेशनल खेला, तो अब सोसाइटी से भी मिला सपोर्ट।

सोसाइटी से फ़र्क़ पड़ने के सवाल पे कहती हैं, "अब नहीं पड़ता, पहले पड़ता था। वो पेरेंट्स से बातें करते तो पेरेंट्स हम पे बोलते, तो उस चीज़ से फ़र्क पड़ता था। अब फ़र्क नहीं पड़ता किसी से, अब आगे बढ़ना है, अब सोसाइटी को लग रहा कुछ कर रहे।"

हीना फिरदौस इसी फ़र्क पड़ने के सवाल के जवाब में कहती हैं कि "बहुत ज्यादा, पहले-पहले जब मैं घर से निकलती थी, मेरी सोसाइटी ऐसी है कि वो, मतलब घर वालों को ऐसे बोलते थे कि पता नहीं क्या करने जा रही, क्या नहीं करने जा रही ! लेकिन मेरे घर वालों को ऐसा ट्रस्ट था मेरे पे, की नहीं हमारी बेटी कुछ करके दिखाएंगी। आज जो मतलब की ऐसे हम स्टेज पे हैं, कि वही सोसाइटी आज सपोर्ट कर रही है पीछे से। क्योंकि उनको लग रहा ये कहीं न कहीं कुछ न कुछ करेंगी। अब अगर कोई सोसाइटी में ऐसे 100 में 10 परसेंट ऐसे लोग हैं, जो पीठ पीछे बातें करते हैं। लेकिन अब कोई फर्क नहीं पड़ता क्योंकि जब घर वाले सपोर्ट करेंगे, सोसाइटी इस नॉट मैटर ।"

हिना बताती हैं "मेरी मामा (माँ) पंजाब से हैं और मेरे फादर वहीं ज्यादा रहे हैं तो उनकी मेंटेलिटी और कश्मीर वालों की टेलिटी में बहुत ज्यादा फ़र्क़ था, फिर भी पाप हैं तो कश्मीरी आखिर । फिर उनकी मेंटेलिटी दूसरों की बातें सुन के वो भी सोचते थे पता नहीं सही होगा, नहीं होगा । " कितने साल चला ये सब के सवाल पे, तो वो बताती हैं "ये अभी तक चल रहा है लेकिन फिर अभी हम इंटरनेशनल के लिए सेलेक्ट हो गए, सब कुछ हो गया। अब पापा मतलब की उनका मुँह खुद भी बंद कर रहे, कि नहीं मेरी बेटी यहां तक पहुँची, अब तुम लोगो को जो बोलना है बोलो, बेटी मेरी है, मुझे जो करना है मैं करूँगा।"

हालांकि इन सब में इन्हें संघर्ष करते हुए अपने गेम पे भी ध्यान करना पड़ता है और संघर्ष सिर्फ ये नहीं होता बाकी गेम की जरूरत का भी संघर्ष है जो आसानी से नहीं मिलती। इन्हें ट्रेवलिंग का इंतेज़ाम करना होता है, अब इंटरनेशनल के लिए स्पांसर का इंतेज़ाम करना होगा या खुद का खर्चा । इन सबके साथ इनके कंधे पे अपने और देश का नाम रोशन करने का बोझ ही है बगैर सुविधा के।

इनके कोच सज्जाद, कोचिंग की जरूरत के लिए कोशिश में हैं, ताकि खेलाडियो को ट्रेनिंग में सुविधा मिल सके। जिसमें गरीब से यतीम बच्चे भी होते हैं, जो चाहते हैं इसमें आगे बढ़ें। इसी सिलसिले में सोशल वर्कर रिज़वान रज़ा ने इन्हें कांग्रेस सांसद राजमणि पटेल से मिलवाया और उन्होंने पूरा वादा किया है कि खेल मंत्रालय से बात की जाएगी और वहाँ से जो हो और बाकी हम अपने फण्ड से करेंगे। इसके लिए इनसे सारी कागजी चीजे और बजट / कोटेशन बना कर लाने बोला है बाकी अब ये आगे है की क्या मदद की जा सकेगी। हालांकि सांसद महोदय इन बच्चों से काफी इंप्रेस है इनकी उपलब्धि और तायक्वोंडो जिसे खेल में इस तरह से कश्मीर में तरक्की से। उनके वादे में संजीदगी दिखी है और वो पूरा हो तो काफी खेलड़ियों को फायदा पहुंचे। बाकी यावर, हीना, बिस्मा से उनके आगे के खेल के साथ तरक्की की आशा, की वो अपने राज्य, परिवार, समाज, देश का नाम रोशन करें। ताकि औरों के लिए इंस्पिरेशन बन सके और साथ ही इस खेल की भी तरक्की हो सके।

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